भगवान श्री राम लला की प्रतिमा के लिए दो विशालकाय शिला नेपाल से अयोध्या पहुंच गई हैं, जो की अयोध्या के रामसेवक पुरम में रखी गई हैं. जहां इन शिलाओ को भगवान श्रीराम का स्वरूप मानकर पूजा-अर्चना की जा रही है वहीं दूसरी तरफ अब शालिग्राम पत्थर पर विवाद भी शुरू हो चुका है ।हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अयोध्या के सबसे प्राचीन पीठ तपस्वी जी की छावनी के पीठाधीश्वर जगद्गुरु परमहंस आचार्य ने नया विवाद खड़ा कर दिया है।
रामसेवक पुरम की कार्यशाला में जब विशालकाय शिला का पूजन किया जा रहा था तभी अचानक तपस्वी छावनी के पीठाधीश्वर जगद्गुरु परमहंस आचार्य रामसेवक पुरम पहुंच गए,जहां उन्होंने ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को एक पत्र दिया। जिसमें लिखा है, ‘भगवान रामलला की मूर्ति बनाने के उद्देश्य से विशालकाय शालिग्राम शिला को लाया गया है, जो भगवान राम और भगवान लक्ष्मण के स्वरूप हैं। इस शिला पर अगर हथौड़ी चलेगी तो मैं अन्न-जल त्याग कर दूंगा’। जगदगुरु ने कहा कि शालिग्राम स्वयं प्रतिष्ठित भगवान हैं। अगर शालिग्राम भगवान के ऊपर छेनी-हथौड़ी चलेगी तो तबाही आ जाएगी। जगतगुरु ने कहा कि 2 विशालकाय शिलाएं दी गई हैं और दो छोटे शालिग्राम की शिला दी गई है. यह चारों भगवान के बाल रूप हैं अगर नेपाल से आई हुई शिलाओं पर छेनी हथौड़ी चलाया जाएगा तो मैं अन्न-जल त्याग दूंगा। जगतगुरु ने कहा कि हम अपने प्राण त्याग देंगे, लेकिन अपने प्रभु के ऊपर छेनी-हथौड़ी नहीं चलाने देंगे।