भारत रत्न 2024 के लिए घोषित हुए नाम में शामिल है कर्पूरी ठाकुर, जानिए कौन है ये महानसख्सियत


भारत रत्न 2024 के लिए घोषित हुए नाम में शामिल है कर्पूरी ठाकुर, जानिए कौन है ये महानसख्सियत

नई दिल्ली।दिल्ली 2 जनवरी 1954 ई. भारत रत्न की शुरुआत से लेकर 2019 तक 48 लोगों को इस डिग्री से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि प्रमुख आचार्य राजगोपालाचारी द्वितीय पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली वैज्ञानिक राधाकृष्णन और फिर डॉक्टरचंद्र वेंकट रमन को इस डिग्री से सम्मानित किया गया था, इसके बाद हर साल कई वर्षों तक इस रत्न से नवाजा जाता है, आप चाहते हैं कि वर्षों से किसी को भी भारत का दर्जा नहीं दिया जाए। दी जाने के कारण पीएम ने प्रणब मुखर्जी, मरणोपरांत भूपेन्द्र कुमार हजारिका, नानाजी देशमुख भारत रत्न एक साथ 2019 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी असमिया, गायक संगीतकार भूपेन हजारिका और सामाजिक कार्यकर्ता नानाजी देशमुख को दिया गया था निधन अब 2024 में पांच लोगों ने मोदी को अलविदा कह दिया भारत रत्न के बारे में बताया गया है कि इसमें सबसे पहला नाम कर्पूरी ठाकुर का है

आपको बता दे की कर्पूरी ठाकुर स्वतंत्रता सेनानी शिक्षक राजनीतिक और बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री रहे थे लोकप्रियता के कारण उन्हें जननायक कहा जाता है। जिसके चलते अब 23 जनवरी को भारत सरकार द्वारा इन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान रत्न देने की घोषणा कर दी गई है। कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल में समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गाँव, जिसे अब ‘कर्पूरीग्राम’ नाम से जाना जाता है, में नाई जाति के एक परिवार में हुआ था। वहीं करी ठाकुर ने 1940 में मैट्रिक की परीक्षा पटना विश्‍वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी में पास की। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन छिड़ गया तो उसमें कूद पड़े। परिणामस्वरूप 26 महीने तक भागलपुर के कैंप जेल में जेल-यातना भुगतने के उपरांत 1945 में रिहा हुए थे।

आपको यह भी जानना जरूरी है कि कर्पूरी ठाकुर 1948 में आचार्य नरेन्द्रदेव एवं जयप्रकाश नारायण के समाजवादी दल में प्रादेशिक मंत्री बने। सन् 1967 के आम चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त समाजवादी दल (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी) (संसोपा ) बड़ी ताकत के रूप में उभरी। 1970 में उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। 1973-77 में वे लोकनायक जयप्रकाश के छात्र-आंदोलन से जुड़ गए। 1977 में समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने। 24 जून, 1977 को पुनः मुख्यमंत्री बने। फिर 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में लोक दल बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर नेता बने थे।

यह आश्चर्यजनक है कि 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में जन्मे कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपनी टूटी झोपड़ी में ही रहते थे। उनके निधन के बाद उस झोपड़ी को हटाकर सरकार ने वहां एक सामुदायिक भवन का निर्माण कराया, जो अब स्मृति भवन के रूप में जाना जाता है।

कर्पूरी ठाकुर का जन्म आज से 100 साल पहले भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया में नाई जाति के परिवार में हुआ था। अब कर्पूरी ठाकुर की जन्मस्थली होने के कारण इस गांव को कर्पूरीग्राम कहा जाता है। कर्पूरी ठाकुर समाजवाद के सच्चे सिपाही थे। केवल सत्रह साल की उम्र में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल गए। देश की आजादी वे लोकनायक जेपी और समाजवादी चिंतक डॉ.राम मनोहर लोहिया के सच्चे चेले थे। तब बिहार के लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी जैसे छात्र नेता राजनीति का ककहरा पढ़ रहे थे। इन सब ने कर्पूरी ठाकुर को राजनीतिक गुरु माना।

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