अमेरिका में शिक्षा प्रणाली भारत से अलग है : अशोक बालियान
हमने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान वहाँ की शिक्षा प्रणाली को समझने का प्रयास किया है।संयुक्त राज्य अमेरिका में निजी, सार्वजनिक और घरेलू स्कूल उपलब्ध हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में अधिकांश छात्र (लगभग 87 प्रतिशत) राज्य के स्वामित्व वाले या सार्वजनिक स्कूलों में जाते हैं। छात्रों का दूसरा हिस्सा (लगभग 10 प्रतिशत) निजी स्कूलों में जाता है और बाकी के घर स्कूलों में जाते है।
अमेरिका में बच्चे 5 या 6 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू करते हैं और 17 या 18 साल की उम्र में पढ़ाई पूरा करते हैं।बच्चों को आमतौर पर आयु समूहों द्वारा ग्रेड में विभाजित किया जाता है, जिसमें किंडरगार्टन (5- से 6 वर्ष के बच्चे) और पहली कक्षा (6- से 7 वर्ष के बच्चे), बारहवीं कक्षा (17- से 18 तक) तक होते हैं। प्री- स्कूल से पहले जाने वाले स्कूलों को किंडरगार्टन स्कूल के रूप में जाना जाता है।
अर्थात् यहाँ स्कूली शिक्षा के कुल 12 साल हैं। यहां का सीनियर हाई स्कूल अक्सर स्नातक या कॉलेज का होता है। यह चरण छात्रों को कॉलेजों या विश्वविद्यालयों में उनके संबंधित विषयों का अध्ययन कराता है।इसके अलावा, छात्र अपने कॉलेज या विश्वविद्यालय को पूरा करने के बाद परास्नातक कर सकते हैं।
अमेरिका की सघन आबादी वाले शहरों में सरकारी स्कूल सिस्टम के तहत संचालित स्कूलों में साधारण वर्ग के बच्चों को शिक्षा दी जाती हैं।अमेरिका में स्कूली आयु के हर बच्चे को निकटवर्ती स्कूल में भर्ती करवाना कानूनन अनिवार्य है,जिस के लिए उसे निशुल्क बस सेवा, मुफ्त या केवल प्रतीकमात्र दर पर लंच, फील्ड ट्रिप्स और कई सुविधाएं उपलब्ध हैं।
शारीरिक या मानसिक रूप से बाधित बच्चों के लिए विशेष शिक्षा का प्रावधान है, जिस के लिए विशेष ट्रेनिंगप् प्राप्त शिक्षक तो होते ही हैं, उन बच्चों को बाथरूम वगैरा ले जाने, उन के डायपर तक बदलने के लिए सहायक नियुक्त किए जाते हैं। हर स्कूल के उपचार कक्ष के लिए फुल नहीं तो पार्टटाइम नर्स अवश्य होती हैं।
लाटरी सिस्टम के जरिए बच्चे अपने रिहाइशी क्षेत्र से दूर अपने पसंदीदा स्कूल में भी सरकारी खर्च पर पढ़ने जा सकते हैं।अमेरिका में शिक्षा व्यवस्था बहुत खर्चीली है, इसलिए सरकार टैक्स द्वारा इस धनराशि की व्यवस्था करती है।अमेरिका में जो स्कूल जहां है, उस इलाके के घरों में रहने वालों से जो प्रापर्टी टैक्स मिलता है, उसका एक हिस्सा सरकारी स्कूलों को दिया जाता है।
भारत में कई प्रादेशिक बोर्ड बच्चों को भविष्य का फैसला नवीं कक्षा में ही लेने को बोलते हैं। यानि कि जब बच्चा आठवीं पास करके नवीं में आ रहा है तो उसे अपने विषयों का चयन करना है और उसी के आधार पर आगे की पढ़ाई की जा सकती है।
अगर आप डॉक्टर बनना चाहते हैं तो आपको हर हालत में जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान और भौतिकी विषयों के साथ ही पढ़ाई करनी है।
अगर आप अभियांत्रिकी (engineering) की पढ़ाई करना चाहते हैं तो आपको गणित, रसायन विज्ञान और भौतिकी विषय ग्यारहवीं और बारहवीं में पढ़ने ही हैं।
इसके अलावा आप अगर आगे कॉलेज में भाषा विशेष की पढ़ाई करना चाहते हैं या फिर मनोविज्ञान या समाजशास्त्र आदि पढ़ना चाहते हैं तो आप कला क्षेत्र में जाएँ।आपको अर्थशास्त्र पढ़ना है तो आप वाणिज्य क्षेत्र में पढ़ाई करें।
अमेरिकी शिक्षा प्रणाली भारतीय प्रणाली से अलग है। यह आपको विषयों को चुनने की आजादी देता है।अमेरिका में नवीं से बारहवीं तक चारों सालों की पढाई को मिलाकर हाई स्कूल कहलाता है।आगे यूनिवर्सिटी व कॉलेज में दाखिले के लिए हाई स्कूल की शिक्षा यहाँ अमेरिका में भी बहुत मायने रखती है।अर्थात् अमेरिका में हाई स्कूल के चारों साल को मिलाकर विषयों का चुनाव करना होता है।कुछ विषयों को पढ़ना जरूरी होता है, बाकी सभी विषय विकल्प के रूप में होते हैं।हर साल आपको कुछ जरूरी विषय लेने हैं और कुछ वैकल्पिक विषय लेने होते है।
हाई स्कूल के बाद कॉलेज में दाखिले के लिए
अमेरिका में मोटे तौर पर एक जैसी प्रणाली है। कॉलेज की पढ़ाई की तैयारी हाई स्कूल के चार सालों में करनी होती है।हाई स्कूल में पढ़ते हुए हर विद्यार्थी को ACT (American College Test)या फिर SAT (Scholastic Assessment Test) लेना जरूरी होता है।इस परीक्षा को कई बार ले सकते हैं। ऐसे में बच्चों के पास अधिक विकल्प हैं।कॉलेज में दाख़िले का फैसला आपके ACT/SAT स्कोर, आपकी हाई स्कूल की अंकतालिका, निबंध आदि सब कुछ देखकर किया जाता है।
अमेरिका में एक बार कॉलेज में दाख़िला लेने के बाद भी आपके पास सभी विकल्प खुले होते हैं।जैसे कि आपने अभियांत्रिकी में दाख़िला लिया, लेकिन आपको कुछ ख़ास रास नहीं आया, तो आप एक साल बाद भी कॉलेज में कोई दूसरा विषय चुन सकते हैं।
अमेरिकी प्रणाली की खास बात यह है कि यह आपको हाई स्कूल से लेकर कॉलेज तक विकल्प देती है। आठवीं पास करते ही बच्चे पर दबाव नहीं है कि उसे अपने आगे की पढ़ाई के विषय चुनने हैं।बल्कि यह आजादी आपके पास कॉलेज तक है।यहाँ प्रायोगिक शिक्षा ज्यादा हैं जबकि भारत में सैद्धांतिक शिक्षा अधिक है।
यहाँ की शिक्षा प्रणाली का उद्देशय है कि बच्चों में बहुआयामी व्यक्तिव विकास हो, जैसे रोजगार सक्षमता बढ़ाना,समर्थ एवं जिम्मेदार नागरिक बनाना, सामाजिक व राजनैतिक समझ विकसित करना आदि।अमेरिका में डार्विन के सिद्धांत को केवल जानकारी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।