PK से राहुल तक चल रहे पैदल… तो क्या सफलता की गारंटी हैं पदयात्राएं? सियासी अतीत तो यही गवाही दे रहा

महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर चुनावी रणनीतिकार कहे जाने वाले प्रशांत किशोर (पीके) की ‘जन सुराज’ पदयात्रा शुरू हो गई। यह पदयात्रा तकरीबन डेढ़ सालों तक चलेगी, जिसमें पीके लगभग 3500 किलोमीटर पैदल चलेंगे और बिहार के हर पंचायत में पहुंचने की कोशिश करेंगे। इधर, पीके ने आज से पदयात्रा की शुरुआत की है, उधर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कई दिनों से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाल रहे हैं। 150 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में राहुल पैदल ही कन्याकुमारी से कश्मीर के बीच 3500 किलोमीटर चलेंगे। दो अक्टूबर तक इस यात्रा के 624 किलोमीटर पूरे हो चुके हैं।

पीके और राहुल गांधी, दोनों की पदयात्राओं के अपने-अपने लक्ष्य हैं। राहुल गांधी जहां 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं तो वहीं, पीके भी बिहार की जनता को लालू-नीतीश और बीजेपी की राजनीति से अलग नई सोच व नया विकल्प देने की कोशिश में हैं। हजारों किलोमीटर की हो रहीं इन पदयात्राओं की वजह से एक बार फिर से अतीत में हुईं पदयात्राओं की चर्चा होने लगी है। इतिहास गवाह रहा है कि ज्यादातर पदयात्राओं ने नेताओं की किस्मत बदल दी और उन्हें सत्ता की कुर्सी पर काबिज करवा दिया। साल 1983 में हुई चंद्रशेखर की ‘भारत यात्रा’, 2003 में हुई कांग्रेस नेता रेड्डी की 1400 किलोमीटर लंबी पदयात्राएं उन पदयात्राओं में शामिल हैं, जिसने उन्हें और पार्टी को जबरदस्त लाभ पहुंचाया। यहां हम ऐसी ही कई पदयात्राओं का जिक्र कर रहे हैं और बताने जा रहे हैं कि कब-कब किस नेता ने पदयात्रा की और उससे कितना बदलाव आया।

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